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अना शक्ति

यह प्राणिवर्ग मस्तिष्क में होता है। रंग हीन है। 'या हू' का जाप इसकी सोपान (मेराज) है और यही प्राणिवर्ग शक्तिशाली हो कर ईश्वर के सामने बेपर्दा वार्तालापित हो जाती है। यह आशिकों का स्थान है इसके अतिरिक्त कुछ विशेषों को ईश्वर की ओर से और अन्य प्राणिवर्गे भी प्रदान हो जाती है, जैसे “तिफ़्ल-ए-नूरी” या “जुस्सा-ए-तौफ़ीक़-ए-इलाही” फिर इनका पद समझ से परे है।

अना शक्ति द्वारा ईश्वर दर्शन स्वप्न में होता है।

जुस्सा-ए-तौफ़ीक़-ए-इलाही द्वारा ईश्वर का दर्शन ध्यान मग्नता में होता है,

और तिफ़्ल-ए-नूरी वालों का दर्शन होशो हवास में होता है।

यही फिर दुनिया में ईश्वरीय शक्ति (कुद्रतुल्लाह) कहलाते हैं, चाहे किसी को आराधना एवं तपस्या, और चाहे किसी को नज़रों से ही महमूद स्थान तक पहुँचा दें, इनकी नज़रों में : क्या मुस्लिम क्या काफिर.......क्या ज़िन्दा क्या मुर्दा, सब बराबर होते हैं जैसा कि गौस पाक की एक नज़र से चोर कुतुब बन गया। या अबू बकर हवारी या मंगा डाकू भी इन लोगों की नज़रों से पीर बन गये।

पाँचों श्रेष्ठ अवतारों को क्रमवार अलग-अलग शक्तियों का ज्ञान दिया गया जिसकी वजह से आध्यात्मवाद में उन्नति होती गयी। जिस जिस शक्ति का जाप करेगा उनसे संबंधित श्रेष्ठ अवतार से संबंध और आध्यात्मिक लाभ का अधिकारी हो जायेगा। और जिस शक्ति पर ईश्वरीय झलक (तजल्ली) पड़ेगी उसकी संतत्व (विलायत) उस अवतार के पदचिन्ह पर होगी। सात आकाशों में पहुँच और सात स्वर्गों में स्थानों की प्राप्ति भी इन ही शक्तियों से होती है।

पुस्तक में पृष्ठ

13-14