ईश्वर का मित्र
यदि किसी को लोग (ख़ल्क़-ए-खुदा) दैव ज्ञान एवं चमत्कार और आध्यात्मिक लाभ के कारण संत (वली) मानते हैं लेकिन उसके किसी कर्म या धर्म के कारण तू हृदय-क्षुब्ध (दिल बर्दाश्ता) है। उसकी निंदा करने से बेहतर है तू उधर जाना छोड़ दे। क्या पता! वह कोई ईश्वर दृष्टिगत (मंज़ूरे खुदा) हो! अमर धर्मगुरू (शेख बका) हो! या कोई लाल शहबाज़ हो! कोई ख़िज़र (विष्णु महाराज) हो! या साईं बाबा हो! या गुरूनानक हो! कोई बुल्ले शाह हो, और कोई सदा सुहागन भी हो सकता है!
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