पुस्तक के परिचय के लिये कुछ उद्धरण
यदि आप किसी धर्म में हैं परंतु ईश्वर के प्रेम से वंचित हैं, इनसे वह बेहतर हैं जो किसी धर्म में नहीं परंतु ईश्वरप्रेम रखते हैं।
प्रेम का संबंध दिल से है, जब दिल की धड़कन के साथ अल्लाह-अल्लाह मिलाया जाता है, तो वह ख़ून द्वारा नस-नस में पहुँच कर आत्मा को जगाता है। फिर आत्माएँ ईश्वर के नाम से तृप्त हो कर ईश्वरप्रेम में चली जाती हैं।
ईश्वर (रब) का कोई भी नाम चाहे किसी भी भाषा में हो आदरणीय है परंतु ईश्वर का असली नाम सुर्यानी भाषा में अल्लाह है जो कि आकाश वासियों की भाषा है, इसी नाम से फरिश्ते उसे पुकारते हैं और हर अवतार के धर्ममंत्र के साथ संलग्न है।
जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से ईश्वर की खोज में जल एवं थल में है वह भी आदरणीय है।
इस दुनिया में एक ही समय में भिन्न-भिन्न स्थलों में कई आदम (शंकर) आये। समस्त आदम दुनिया में दुनिया की ही मिटटी से बनाये गये, जबकि अंतिम आदम (शंकर जी) जिनकी समाधि अरब में हैं स्वर्ग की मिट्टी से एक बनाये गये, इनके अतिरिक्त किसी और आदम को फ़रिश्तों ने नमस्तक (सिजदा) नहीं किया। इब्लीस इसी आदम (शंकर जी) की संतानों का शत्रु हुआ।
मनुष्य के शरीर में सात प्रकार के प्राणी हैं, जिनका संबंध भिन्न-भिन्न आकाश, भिन्न-भिन्न स्वर्गों और मनुष्यों के शरीर में भिन्न-भिन्न कार्यों से है। यदि इनको नूर की ताकत पहुँचाई जाये तो यह उस मनुष्य के रूप में एक ही समय में अनेकों स्थानों यहाँ तक कि संतों, अवतारों (वलियों, नबियों) की सभा और रब से बातचीत या दर्शन तक पहुँच सकते हैं।
प्रत्येक मनुष्य के दो धर्म होते हैं, एक शरीर का धर्म जो मृत्योपरान्त समाप्त हो जाता है, दूसरा आत्माओं का धर्म जो कि सृष्टिकाल में था अर्थात ईश्वरप्रेम, इसी के द्वारा मनुष्य का पद (मरतबा) ऊँचा होता है।
समस्त धर्मों से उच्चतर ईश्वर का इश्क है और सब आराधनाओं (इबादात) से उच्चतर ईश्वरदर्शन है।
मनुष्य, पशुओं, वृक्षों, और पत्थरों से संबंधित जानकारियाँ, कि यह किस प्रकार अस्तित्व में आये और क्यों कोई हराम और कोई हलाल हुआ।
आत्माओं और फरिश्तों के ईश्वराज्ञा (अमर-ए-कुन) से भी पहले कौन से प्राणी (मखलूक) थे? वह कौन सा कुत्ता था जो हज़रत कतमीर बनकर स्वर्ग में जायेगा? और वह कौन से लोग हैं जिनकी आत्माओं ने सृष्टिकाल में ही धर्ममंत्र (कलिमा) पढ़ लिया था?
वह कौन से बंदे का रहस्य है जो इस पुस्तक में वर्णित नहीं है?
जानकारी और तहकीकात के लिये इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें।
पुस्तक में पृष्ठ
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