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भूमिका

द्वारा आर० ए० गौहर शाही

  1. जो धर्म आकाशीय ग्रंथों द्वारा स्थापित हुए वह सत्य हैं बशर्त कि उनमें परिवर्तन न किया गया हो!
  2. धर्म नाव और विद्वान नाविक की तरह होते हैं, यदि किसी एक में भी त्रुटि हो तो गंतव्य पर पहुँचना कठिन है। परंतु संत पुरूष (अवलिया) टूटी फूटी नाव को भी किनारे लगा देते हैं, यही कारण है कि टूटे फूटे लोग संतों के चहुं ओर एकत्रित हो जाते हैं!
  3. धर्म से उच्चतर ईश्वरप्रेम है, जो समस्त धर्मों का निचोड़ है। जबकि ईश्वर का प्रकाश (नूर) मार्गज्योति है!
  4. तीन भाग वह्य ज्ञान के और एक भाग आंतरिक ज्ञान का है जो विष्णु महाराज (ख़िज़र अलै०) द्वारा सर्व साधारण हुआ। ईश्वर का प्रेम ही ईश्वर की समीपता का साधन है, जिस दिल में ईश्वर नहीं कुत्ते उससे श्रेष्ठ हैं, क्योंकि वह अपने स्वामी से प्रेम करते हैं और प्रेम ही के कारण स्वामी की सन्निकटता प्राप्त कर लेते हैं वरना कहाँ एक अपवित्र कुत्ता और कहाँ श्रेष्ठतम मानव!
  5. यदि तुझे स्वर्ग और स्वर्गांगनाओं एवं महलों की इच्छा है तो खूब आराधना कर ताकि ऊंचे से ऊंचा स्वर्ग मिल सके!
  6. यदि तुझे ईश्वर की तलाश है तो आध्यात्मवाद भी सीख ताकि तू सत्यमार्ग (सिरात मुस्तकीम) पर चलकर ईश्वर के मिलन तक पहुँच सके!

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